एनआरसीसी में प्रशिक्षण हेतु पहुंचे राजस्थान एवं मध्यप्रदेश राज्यों के ऊंटपालक
केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. समर कुमार घौरुई ने ऊंटपालकों को संबोधित करते हुए कहा कि घटती ऊंट संख्या को रोकने हेतु इस प्रजाति की बहुआयामी उपयोगिता और विशेष रूप से उद्यमिता विकास पर ध्यान देना जरूरी है। उन्होंने ऊँटनी के औषधीय दूध के मानव स्वास्थ्य लाभ (मधुमेह, टी.बी., ऑटिज़्म आदि) के साथ वैश्विक विपणन, व्यवसायिक प्रशिक्षण और मिश्रित कृषि पद्धति (खेती व पशुपालन) को अपनाने की महत्ता पर भी प्रकाश डाला।
इस अवसर पर नेटवर्क परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. वेद प्रकाश के माध्यम से अपना संदेश पहुंचाते हुए केन्द्र निदेशक डॉ. अनिल कुमार पूनिया ने ऊंटपालकों से कहा कि इस महत्वपूर्ण प्रशिक्षण के दौरान वे ऊंटों के विविध पहलुओं से जुड़ा ज्ञान विशेषज्ञों से अर्जित करें और उष्ट्र पालन व्यवसाय को और अधिक सुदृढ़ बनाने हेतु आगे आएं। परियोजना के प्रधान अन्वेषक ने बताया कि इस नेटवर्क परियोजना के तहत मेवाड़ी, मेवाती और मालवी उष्ट्र नस्ल के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु ऊँटपालकों को सशक्त बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
प्रशिक्षण समन्वयक डॉ. बसंती ज्योत्सना ने कहा कि प्रशिक्षणार्थियों को दुधारू ऊंटों के प्रबंधन एवं डेयरी आधारित उद्यमिता विकास के विभिन्न पहलुओं जैसे, प्रजनन एवं चयन पद्धति, प्रबंधन तहत आंकड़ा, उष्ट्र स्वास्थ्य के अलावा दूध का प्रसंस्करण एवं विपणन तथा दुग्ध उत्पादों का निर्माण एवं उद्यमिता विकास योजनाओं की जानकारी विषय-विशेषज्ञों के माध्यम से प्रदान की जाएगी।
इस दौरान ऊँट पालकों ने अपने-2 क्षेत्रों में ऊँटों की वस्तुस्थिति की भी जानकारी देते हुए उष्ट्र पालन व्यवसाय में आ रही चुनौतियों का सामना करने में इस परियोजना तहत एनआरसीसी के सहयोग की सराहना भी की। परियोजना एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम के सह समन्वयक डॉ. विश्व रंजन उपाध्याय, वैज्ञानिक ने उद्घाटन कार्यक्रम का संचालन किया।