अपूज्यों की पूजा और योग्य का अपमान होने पर आती हैं आपदाएं: विज्ञानानंद
श्रीमद् भगवतगीता के उपदेशों को मानव जीवन से जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि कर्म प्रधान है और प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर ही फल मिलता है। मानव जीवन में आने वाले दैहिक, दैविक एवं भौतिक कष्टों की व्याख्या करते हुए शतायु संत ने कहा कि जब व्यक्ति ईश्वर का आदर नहीं करता तो अपराधिक राग-द्वेष की अग्नि प्रदीप्त होती है। देवताओं का अपमान करने से दैवीय आपदाएं बढ़ती हैं और जो शरीर से सेवा नहीं करता उसे शारीरिक कष्ट झेलने पड़ते हैं। जब अपूज्यों की पूजा और योग्य व्यक्तियों का अपमान होता है तो भी दैवीय आपदाएं बढ़ती हैं, आज यही हो रहा है। कहीं बादल फटते हैं तो कहीं अकाल मृत्यु हो रही है। जब धर्म का अपमान होता है तब भी आपदाएं बढ़ती हैं।