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मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ का लोक प्रशासन मॉडल, जो हर राज्‍य के लिए हो सकता है आदर्श

भारत के संघीय ढांचे में लोक प्रशासन और पुलिस व्यवस्था राज्यों की जिम्मेदारी है, परन्तु देश की सुरक्षा और नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करने के लिए सभी राज्यों में एक समान सख्त, निष्पक्ष और जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा होना आवश्यक है। उत्तर प्रदेश ने पिछले कुछ वर्षों में जिस प्रकार अपराध और भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने ‘जीरो टॉलरेंस’ मॉडल को स्थापित किया है, वह न केवल कानून व्यवस्था के क्षेत्र में एक नई मिसाल है, बल्कि इसने लोक प्रशासन की अवधारणा को व्यावहारिक धरातल पर उतारने की दिशा में भी उल्लेखनीय कार्य किया है।

वस्‍तुत: इस संदर्भ में पुलिस महानिदेशक राजीव कृष्ण के ताज़ा आंकड़े इस नीति की वास्तविक उपलब्धियों को दर्शाते हैं। केवल दो वर्षों में 8,785 दोषियों को उम्रकैद और 70 को फांसी की सजा सुनाया जाना यह संकेत देता है कि न्यायिक तंत्र के साथ तालमेल बैठाकर अपराधियों को शीघ्र सज़ा दिलाने में पुलिस की भूमिका कितनी निर्णायक हो सकती है। 1 जुलाई 2023 से अब तक 1 लाख से अधिक लोगों को विभिन्न अपराधों में दोषी ठहराना, इनमें माफिया सरगनाओं और उनके सहयोगियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई, और गैंगस्टर एक्ट के तहत 14,400 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त करना केवल आंकड़े नहीं, बल्कि एक सख्त संदेश हैं कि राज्य में अपराध का कोई स्थान नहीं है।

उत्तर प्रदेश का यह मॉडल पारंपरिक ‘कानून-व्यवस्था बनाए रखने’ के ढांचे से आगे बढ़कर एक सक्रिय अपराध-निरोधक प्रणाली में विकसित हुआ है। यह केवल अपराध होने के बाद की प्रतिक्रिया पर निर्भर नहीं है, बल्कि अपराध के स्रोत, नेटवर्क और आर्थिक जड़ों पर प्रहार करता है। माफिया और संगठित अपराध से जुड़े मामलों में वित्तीय संपत्ति की जब्ती इस बात का प्रमाण है कि केवल गिरफ्तारी पर्याप्त नहीं, बल्कि उनके आर्थिक ढांचे को तोड़ना ही असली नियंत्रण है। यही कारण है कि यह मॉडल अन्य राज्यों के लिए भी अनुकरणीय बन सकता है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस और प्रशासनिक ढांचे को स्पष्ट संदेश दिया है कि अपराध और भ्रष्टाचार पर समझौता अस्वीकार्य है, और इस संदेश का असर पुलिस के हर स्तर पर दिखाई देता है।

‘मिशन शक्ति’ के अंतर्गत महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण में जो प्रयास हुए हैं, वे इस मॉडल के मानवीय पक्ष को भी उजागर करते हैं। महिलाओं के प्रति अपराध रोकने में तकनीकी पुलिसिंग, सामुदायिक भागीदारी और त्वरित प्रतिक्रिया व्यवस्था को केंद्र में रखकर जो संरचना विकसित की गई है, उसने नागरिकों, विशेषकर महिलाओं में सुरक्षा की भावना को मजबूत किया है। यूपी-112 जैसी आपातकालीन सेवा को देश में सर्वश्रेष्ठ माना जाना, और पुलिस मुख्यालय के सोशल मीडिया सेंटर द्वारा 1 जनवरी 2023 से अब तक 1,257 आत्महत्या संबंधी मामलों में हस्तक्षेप कर जानें बचाना, इस बात का प्रमाण है कि पुलिस व्यवस्था केवल अपराधियों को पकड़ने तक सीमित नहीं, बल्कि संवेदनशील हस्तक्षेप और मानवीय सहारे का भी केंद्र हो सकती है। यह दृष्टिकोण लोक प्रशासन के उस सिद्धांत के अनुरूप है जिसमें राज्य के सभी अंगों का प्राथमिक उद्देश्य नागरिक कल्याण और मानव गरिमा की रक्षा करना माना गया है।

अन्य राज्यों की स्थिति पर दृष्टि डालें तो कई जगहों पर पुलिसिंग अब भी पारंपरिक ढर्रे पर चल रही है; मामले दर्ज करना, वर्षों तक मुकदमे चलना, और अपराधियों का जमानत पर बाहर आना आम बात है। कुछ राज्यों में राजनीतिक हस्तक्षेप और अपराध-राजनीति के गठजोड़ ने पुलिस की कार्यकुशलता को बाधित किया है। ऐसे परिदृश्य में उत्तर प्रदेश का मॉडल एक सकारात्मक दबाव भी बनाता है, क्योंकि नागरिक अब यह देख पा रहे हैं कि सख्त और पारदर्शी पुलिसिंग से अपराध पर अंकुश लगाया जा सकता है। इस मॉडल के व्यापक अनुप्रयोग के लिए अन्य राज्यों को भी अपने कानून-व्यवस्था ढांचे का आधुनिकीकरण करना होगा, तकनीकी क्षमता बढ़ानी होगी, और सबसे महत्वपूर्ण, पुलिस को राजनीतिक दबाव से मुक्त करना होगा।

वस्‍तुत: लोक प्रशासन का मूल आधार ही है; कानून का शासन, पारदर्शिता और जवाबदेही। यदि हर राज्य उत्तर प्रदेश की तरह अपराध और भ्रष्टाचार पर ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति अपनाए, तो पूरे देश में कानून-व्यवस्था के प्रति नागरिकों का विश्वास कई गुना बढ़ सकता है। लेकिन यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि सख्ती का अर्थ मनमानी नहीं होना चाहिए। संवैधानिक अधिकारों और मानवाधिकार मानकों की रक्षा करते हुए ही कठोर कार्रवाई को लागू किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश के अनुभव से यह सीखा जा सकता है कि सख्ती और संवेदनशीलता का संतुलन कैसे साधा जाए; जहां अपराधी के प्रति कोई नरमी न हो, पर निर्दोष नागरिक की गरिमा और अधिकार पूर्ण रूप से सुरक्षित रहें।

पुलिस कर्मियों के सम्मान और प्रशिक्षण के मोर्चे पर भी उत्तर प्रदेश का उदाहरण उल्लेखनीय है। 60,244 नए कांस्टेबलों को ‘हाइब्रिड मोड’ में प्रशिक्षित करना, जिसमें साइबर अपराध जांच, एआई टूल्स का उपयोग और सिमुलेशन-आधारित निर्णय लेने की क्षमता विकसित करना शामिल है, यह दिखाता है कि पुलिसिंग अब केवल बल-आधारित नहीं, बल्कि ज्ञान और तकनीक-आधारित पेशा बन चुका है। राष्ट्रपति वीरता पदक से लेकर उत्कृष्ट सेवा पदक तक, बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को सम्मानित करना न केवल मनोबल बढ़ाता है, बल्कि पेशेवर ईमानदारी को भी प्रोत्साहित करता है। यह पहल अन्य राज्यों के लिए भी आवश्यक है, क्योंकि बिना प्रशिक्षित और प्रेरित बल के कोई भी नीति सफल नहीं हो सकती।

भारत की स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे होने पर यानी 2047 तक ‘वैश्विक मानक’ की आधुनिक, संवेदनशील और सशक्त पुलिसिंग का लक्ष्य केवल एक नारा नहीं, बल्कि नीति और योजना के रूप में अपनाया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश ने इस दिशा में अपने लक्ष्य को स्पष्ट कर दिया है, जिसे डीजीपी ने ‘मुस्कुराता, आत्मविश्वास से भरा और सुरक्षित नागरिक’ के रूप में परिभाषित किया। यह लक्ष्य हर राज्य के लिए समान होना चाहिए, क्योंकि नागरिक का आत्मविश्वास ही किसी लोकतंत्र की सबसे बड़ी पूंजी है।

इस मॉडल को देशभर में लागू करने के लिए एक राष्ट्रीय स्तर का ‘लोक प्रशासन सुधार मिशन’ शुरू किया जा सकता है, जिसमें राज्यों को अपने प्रदर्शन और सुधार के आधार पर रैंकिंग दी जाए, और सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं को साझा किया जाए। साथ ही, केंद्र और राज्य के बीच सहयोग को मजबूत किया जाए, ताकि तकनीकी संसाधन, प्रशिक्षण मॉड्यूल और अपराध-निरोधी रणनीतियां पूरे देश में एक जैसी प्रभावी हो सकें। अंततः कहना यही होगा भारत के नागरिकों को सुरक्षित, सम्मानजनक और भय-मुक्त जीवन देने के लिए अब समय आ गया है कि हर राज्य अपने भीतर के अपराध-तंत्र को तोड़ने का साहस दिखाए और एक ऐसे लोक प्रशासन की नींव रखे जो उत्तर प्रदेश में मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ की तरह सख्त, जवाबदेह और संवेदनशील हो।

(लेखक केंदीय फिल्‍म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्‍य एवं पत्रकार हैं)

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