समुंद्री हाल चुनाव: सिख धर्म में राजनीति का संगम, सही या गलत?
**भास्कर न्यूज | अमृतसर:** शुक्रवार की शाम शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के कार्यकारी प्रधान बलविंदर सिंह भूंदड़, सुखबीर बादल, हरसिमरत बादल, प्रो. दलजीत सिंह चीमा सहित अन्य नेता अमृतसर पहुंचे और श्री दरबार साहिब में माथा टेककर आशीर्वाद लिया। इस दौरान उन्होंने बताया कि नए प्रधान के सामने सबसे बड़ी चुनौती जत्थेदारों के हटाने से उत्पन्न रोष को शांत करना है। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि श्री अकाल तख्त साहिब की पांच सदस्यीय कमेटी के गठन का मामला भी नए अध्यक्ष के लिए एक बड़ी परेशानी बन सकता है। इसके अतिरिक्त, उसे कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी द्वारा किए जाने वाले हमलों से भी जनता में पार्टी के प्रति विश्वास जगाना होगा। परंतु इन सभी चुनौतियों के बीच अध्यक्ष को 2027 के चुनावों के लिए केवल दो वर्षों का समय ही मिलेगा।
श्री दरबार साहिब परिसर में स्थित तेजा सिंह समुंद्री हॉल में पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के निर्णय का विरोध शुरू हो गया है। कुछ पंथक प्रतिनिधियों, जैसे की परमजीत सिंह साहोली, सतनाम सिंह मनावां और मनजीत सिंह भोमा ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर कहा है कि धार्मिक स्थलों पर राजनीतिक गतिविधियां आस्था के खिलाफ हैं। उन्होंने चुनाव आयोग से निवेदन किया है कि इस प्रक्रिया को रोका जाये, क्योंकि यह लोकतांत्रिक सिद्धांतों का उल्लंघन है।
सिख विद्वान और गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. अमरजीत सिंह का मानना है कि शिअद प्रधानी का चुनाव एसजीपीसी मुख्यालय में कराना गलत नहीं है। उनका कहना है कि सिख धर्म में राजनीति और सियासत हमेशा से एक साथ चलते आए हैं। यदि पंथक प्रतिनिधियों को किसी बात की आपत्ति थी, तो उन्हें श्री अकालतख्त साहिब पर इस संबंध में इसे उठाना चाहिए था कि 2 दिसंबर को बनाई गई कमेटी से अलग एक अन्य कमेटी का निर्माण किया गया है। ऐसे में यदि शिअद की सदस्यता की प्रक्रियाओं को ध्यान में रखा जाता, तो यह उचित होता।
इस प्रकार के विरोध और विचारों के बीच, यह स्पष्ट होता है कि शिअद का नया नेतृत्व न केवल आंतरिक चुनौतियों का सामना करेगा, बल्कि उसे अपने राजनीतिक मापदंडों को भी सहेजना होगा। अमृतसर के धार्मिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में इस चुनाव का महत्व अत्यधिक है, और आगामी वर्षों में पार्टी को अपने सिद्धांतों और आस्थाओं के प्रति सतर्क रहना होगा। इसके साथ ही नए अध्यक्ष को अपनी कार्यशैली को अनुकूलित करते हुए पार्टी की छवि को बनाए रखने की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता होगी।