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हिसार : जातिवाद खत्म करने के लिए संवैधानिक संशोधन काे आगे आएं सांसद: वजीर सिंह एडवोकेट

हिसार : जातिवाद खत्म करने के लिए संवैधानिक संशोधन काे आगे आएं सांसद: वजीर सिंह एडवोकेट

जातिविहीन भारत के संयोजक ने सांसदों को पत्र लिखकर उठाई मांग

हिसार, 14 नवंबर (हि.स.)। जातिविहिन भारत के संयोजक वजीर सिंह एडवोकेट ने सांसदों से जातिवाद खत्म करने के लिए संसद से संविधान में संशोधन करने व अन्य जरूरी कानून बनाने बारे पत्र लिखा गया है। पत्र में जातिवाद खत्म करने की पूरी प्रक्रिया लिखी गई है तथा बताया गया है कि जातिवाद खत्म हो सकता है, आसानी से खत्म हो सकता है और समतावादी समाज का निर्माण किया जा सकता है।

वजीर सिंह ने गुरुवार को बताया कि जातिवाद शुरू से नहीं है, बल्कि ऋग्वेदिक काल में भी तीन वर्ण थे जो बाद में चार वर्ण हुए और आज बढ़ते बढ़ते चार हजार से ज्यादा जातियां बन गई। जब चार वर्ण से चार हजार जातियां बन सकती हैं तो चार हजार जातियों से एक जाति भी बन सकती है, बस उसके लिए इच्छा शक्ति चाहिए। जातिवाद को कभी भी अच्छा नहीं माना गया। सबसे पहले महात्मा बुद्ध ने इसका विरोध किया था, फिर 12वीं शताब्दी में रामानुज आचार्य व धार्मिक गुरु बासवान ने जातिवाद खत्म करने के प्रयास किए। भक्ति काल में संत कबीर, संत दादू दयाल, संत तुकाराम, गुरु नानक देव जी व अन्य ने जातिवाद को मानवता के खिलाफ बताया और इसको खत्म कर समतावादी समाज बनाने के लिए जीवन भर अपने प्रयास किए।

स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी विवेकानंद ने भी जातिवाद में भेदभाव के खिलाफ लोगों को प्रेरित करते हुए इसे खत्म करने के लिए अभियान चलाया। महात्मा फूले, डॉ. भीमराव अंबेडकर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी और साहब काशीराम ने अपने-अपने स्तर पर प्रयास किया तथा लोगों से जातिवाद खत्म करने के लिए सशक्त आह्वान किया। हमारे संविधान की मूल भावना भी जातिवाद खत्म कर समतावादी समाज बनाने की है और यह सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी केस जिसको मंडल आयोग केस भी कहा जाता है समेत अन्य केसों में स्पष्ट भी किया है।

एडवोकेट वजीर पूनिया ने अपने पत्र में कहा है कि आज तो जातिवाद ने हर क्षेत्र को जहरीला बना दिया है, चाहे सामाजिक क्षेत्र हो, राजनीतिक क्षेत्र हो, प्रशासनिक क्षेत्र हो, यहां तक की न्यायिक क्षेत्र को भी अछूता नहीं छोड़ा है। हमारी चुनावी प्रक्रिया तो ऐसी स्थिति में पहुंच गई है जैसे इसके बगैर न तो चुनाव हो सकते हैं और न ही चुनाव जीता जा सकता है। जातिवाद के मुद्दे के सामने कोई भी मुद्दा टिक ही नहीं पा रहा है। जातिवाद में छुआछूत व भेदभाव के कारण धर्मांतरण हो रहा है, इससे भारत की जनसांख्यिकी भारी बदलाव देखने को मिल रहा है, जिससे देश की एकता व अखंडता को गम्भीर खतरा पैदा हो गया है। इसलिए अब जातिवाद को खत्म करना समय की जरूरत बन गई है।

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