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पंजाबी सूबा दिवस पर हंगामा: सुखबीर बादल के निशाने पर केंद्र, SGPC ने लगाया बेईमानी का आरोप!

आज 1 नवंबर को पंजाब में दिवाली के साथ-साथ ‘बंदी छोड़ दिवस’ और ‘पंजाबी राज्य दिवस’ भी धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह दिन विशेष रूप से 1966 के उस ऐतिहासिक मौके की याद दिलाता है जब पंजाब का गठन भाषा के आधार पर हुआ था। उस समय, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश को अलग कर पंजाब की सीमाएं निर्धारित की गईं। इस अवसर पर अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल ने केंद्र सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए सोशल मीडिया प्लेटफार्म X पर एक पोस्ट साझा की। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सिख समुदाय ने सबसे अधिक बलिदान दिया, लेकिन Congress नेताओं ने स्वतंत्रता के बाद अपने वादों से मुकरने का काम किया।

सुखबीर बादल ने अपने संदेश में स्पष्ट किया कि सिखों के प्रति की गई ज्यादतियों के विरोध में, शिरोमणि अकाली दल ने मातृभाषा पंजाबी के आधार पर “पंजाबी प्रांत” की माँग की थी। इसके लिए अनेक अकाली नेताओं ने काफी संघर्ष किया, अनेक ने जेलों में यातनाएं साहीं, धरने दिए और अपने हकों की रक्षा के लिए आवाज उठाई। अंततः, इस संघर्ष और बलिदान के फलस्वरूप 1 नवंबर 1966 को ‘पंजाबी प्रांत’ का गठन हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि आज भी केंद्र सरकार द्वारा पंजाब की अनदेखी और भेदभाव की नीति जारी है, जिसके खिलाफ शिरोमणि अकाली दल निरंतर संघर्ष जारी रखेगा।

सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने भी इस अवसर पर केंद्र के प्रति अपना विरोध जताते हुए एक पोस्ट साझा किया। SGPC ने यह उल्लेख किया कि 1966 में भाषाई आधार पर पंजाबी राज्य का गठन हुआ, जो देश के विभाजन के बाद विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं के आधार पर प्रांतों के परिसीमन का परिणाम था। आंध्र प्रदेश के गठन के बाद, शिरोमणि अकाली दल ने एक बार फिर से पंजाबी राज्य की मांग उठाई। इतनी कठिनाइयों के बावजूद, हजारों सिखों ने संघर्ष जारी रखा, जेलों में गए, यातनाएं झेली और अपनी जान की बाजी लगाई।

पंजाब के पुनर्गठन का इतिहास 1960 के दशक से शुरू होता है, जब सिखों और पंजाबी भाषी लोगों ने एक अलग राज्य की मांग की। 1966 में, इस मांग को पूरा किया गया और पंजाब को मुख्य रूप से पंजाबी बोलने वालों का राज्य घोषित किया गया। इसके साथ ही हरियाणा को एक अलग हिंदी भाषी राज्य के रूप में मान्यता मिली और हिमाचल प्रदेश का भी गठन हुआ। इस पुनर्गठन का मुख्य उद्देश्य भाषाई और सांस्कृतिक पहचान को सुदृढ़ करना था।

इस प्रकार, 1 नवंबर का दिन सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना की याद दिलाने का ही अवसर नहीं है, बल्कि यह पंजाब की सांस्कृतिक धरोहर और उसके संघर्ष की गाथा को भी दर्शाता है। वर्तमान समय में, जब पंजाब के लोग इस दिन को धूमधाम से मना रहे हैं, उन्हें यह याद रखना चाहिए कि यह दिन उनके अधिकारों और पहचान की रक्षा के लिए स्थायी संघर्ष की प्रेरणा देता है।

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