मूर्ख दिवस का है दिलचस्प इतिहास
मूर्ख दिवस (1 अप्रैल) पर विशेष
योगेश कुमार गोयल
‘मूर्ख दिवस’ मनाने की परम्परा कब, कैसे और कहां प्रचलित हुई, इस बारे में दावे के साथ तो कुछ नहीं कहा जा सकता पर माना यही जाता है कि इस परम्परा की शुरूआत फ्रांस में 16वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुई थी। माना जाता है कि एक अप्रैल 1564 को फ्रांस के राजा ने मनोरंजक बातों के जरिये एक-दूसरे के बीच मैत्री और प्रेम भाव की स्थापना के लिए एक सभा का आयोजन कराया था। उसके बाद निर्णय लिया गया कि अब से हर वर्ष इसी दिन ऐसी ही सभा का आयोजन होगा, जिसमें सर्वाधिक मूर्खतापूर्ण हरकतें करने वाले व्यक्ति को ‘मास्टर ऑफ फूल’ की उपाधि से सम्मानित किया जाएगा। इस सभा में शिरकत करने वाले व्यक्ति अनोखी और विचित्र वेशभूषाएं धारण करके अपनी अजीबोगरीब हरकतों से उपस्थित जनसमूह का मनोरंजन किया करते थे और सर्वाधिक मूर्खतापूर्ण हरकत करने वाले व्यक्ति को ‘मूर्खों का अध्यक्ष’ चुना जाता था, जिसे ‘बिशप ऑफ फूल्स’ की उपाधि से नवाजा जाता था। इस सभा के बाद ‘गधा सम्मेलन’ का भी आयोजन होता था, जो करीब एक सप्ताह चलता था। सम्मेलन में लोग अपने चेहरे पर गधे के मुंह की आकृति के मुखौटे लगाकर गधे की आवाज निकालते थे। इस दिन वहां कर्मचारी, अधिकारी सभी एक-दूसरे का मजाक उड़ाने को स्वतंत्र होते थे।
यह भी मान्यता है कि 1564 में फ्रांस के सम्राट चार्ल्स के आदेश पर लागू हुए ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार नए साल की शुरूआत 1 जनवरी से की जाने लगी जबकि उससे पूर्व चूंकि वर्ष में सिर्फ 9 ही महीने होते थे, अतः नया साल 1 अप्रैल से ही शुरू होता था लेकिन ग्रेगेरियन कैलेंडर लागू किए जाने के बाद भी जो लोग 1 अप्रैल को ही नव वर्ष के रूप में मनाते रहे, दूसरे लोगों ने उनका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया और इस तरह 1 अप्रैल को ‘मूर्ख दिवस’ के रूप में मनाए जाने की परम्परा शुरू हो गई। कुछ पश्चिमी राष्ट्रों में वे लोग, जो जूलियन कैलेंडर के अनुसार नए साल की शुरूआत 25 मार्च से मानते हैं, वे वसंत के आगमन के साथ ही नए साल के आने की खुशियां मनाते हैं और एक सप्ताह तक चले इन मनोरंजक कार्यक्रमों का समापन वे 1 अप्रैल को ही करते हैं। ‘एनसाइक्लोपीडिया ऑफ रिलीजन’ तथा ‘एनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटानिका’ के अनुसार भी एक अप्रैल को ‘मूर्ख दिवस’ मनाने का सीधा संबंध वसंत के आगमन से ही है, जब प्रकृति मनुष्य को अपने अनियमित मौसम से मूर्ख बनाती है।
कुछ लोग अप्रैल फूल मनाने की परम्परा की शुरूआत इटली से हुई मानते हैं। प्राचीन समय से ही इटली में एक अप्रैल को एक मनोरंजन उत्सव मनाया जाता है, जिसमें स्त्री-पुरूष सभी जमकर शराब पीते हैं और नाच-गाकर खूब हुड़दंग मचाते हैं। रात के समय दावतों का आयोजन भी किया जाता है। यूरोप के कुछ देशों में भी प्राचीन काल से ही ‘मूर्ख दिवस’ मनाए जाने का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि इस दिन वहां मालिक नौकर की और नौकर मालिक की भूमिका अदा करता था और नौकर इस दिन मालिक से अपने मनचाहे काम कराते थे, जिन्हें मालिक भी बिना किसी विरोध के खुशी-खुशी किया करते थे।
यूनान में ‘मूर्ख दिवस’ की शुरूआत कैसे हुई, इस संबंध में कई किस्से प्रचलित हैं। ऐसे ही एक किस्से में कहा जाता है कि यूनान में एक व्यक्ति को खुद की बुद्धि और चतुराई पर बहुत घमंड था। वह बुद्धिमानी और चतुराई के मामले में अपने बराबर दुनिया में किसी को कुछ नहीं समझता था। एक बार उसके कुछ दोस्तों ने उसे सबक सिखाने का निश्चय किया और उससे कहा कि मध्य रात्रि के समय पहाड़ की चोटी पर आज देवता अवतरित होंगे और वहां जितने भी लोग उपस्थित होंगे, उन्हें वह मनचाहा वरदान देंगे। अपने दोस्तों की बात पर विश्वास करके वह अगले दिन सुबह होने तक पहाड़ की चोटी पर देवता के प्रकट होने का इंतजार करता रहा और जब निराश होकर वापस लौटा तो दोस्तों ने उसका खूब मजाक उड़ाया। जिस दिन यह घटना हुई, उस दिन पहली अप्रैल थी। माना जाता है कि तभी से यूनान में एक अप्रैल को लोगों को मूर्ख बनाने की परम्परा शुरू हुई।
स्कॉटलैंड में अप्रैल फूल को ‘अप्रैल गोक’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है पपीहा और पपीहा को यहां बुद्धूपन का प्रतीक माना गया है। इस अवसर पर लोग यहां कई प्रकार की मनोरंजक व आश्चर्यजनक अफवाहें उड़ाते हैं, जिन पर लोगों को आसानी से विश्वास भी हो जाता है। आज तो दुनिया के बड़े-बड़े टी. वी. चैनल और प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाएं भी अपने दर्शकों व पाठकों के साथ 1 अप्रैल को ऐसी हंसी-ठिठौली करने में पीछे नहीं रहते।