नशे के खिलाफ एक मजबूत सामाजिक और राष्ट्रीय मुहिम की जरूरत
नशे के विरुद्ध एक सामाजिक युद्ध जरुरी है। यह नशा रुपी कलंक पूरे समाज और राष्ट्र के लिए खतरा बना हुआ है। नशे का यह विनाशक तत्व किस तरह से हमारी सामाजिक जड़ों तक पहुंच रहा है, उसकी कुछ बानगी देखिये-
-हाल ही में एक पिता नशे की हालत में अपने आठ साल के बच्चें की छाती पर बैठ गया और इतना टार्चर किया कि बच्चे का दम निकल गया।
-मेरठ में मुस्कान ने प्रेमी के साथ मिलकर पति की बर्बरता से हत्या कर दी, पता चला कि दोनों ने हत्याकांड को अंजाम देने से पहले नशे का सेवन किया था।
-उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में भाई ने दूसरे भाई को आटा चुराने के कारण जान से मार दिया, हत्यारा भाई शराब के नशे का आदी था।
-अमरोहा में शराब के नशे में एक युवक ने पत्थर से मार-मार कर छोटे भाई की जान ले ली।
देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसी घटनाएं रोज घटित हो रही है। तब अहसास होता है कि आजादी के 77 वर्ष पूरे होने की बाद आज जिस विकसित राष्ट्र की संकल्पना को लेकर इस देश का युवा जिसको देश के स्वर्णिम कल का वह प्रहरी माना जा रहा है जिसके बूते भारत विश्व गुरु बनने का सपना पूरा करेगा और यह सच भी है कि विश्व गुरु बनाने में युवाओं का ही विशेष महत्व और भूमिका है। किंतु आज देश का युवा नशे की गिरफ्त में चला जा रहा है और समाज इसकी चिंता करने के बजाय लगातार इसकी अनदेखी कर रहा है।
एक समय था कि जब पड़ोसी को भी यह चिंता रहती थी कि हमारे पड़ोसी का बालक किसी गलत संगत में ना पड़ जाए किंतु जबसे मानवीय व्यवहार में परिवर्तन आया और लोग केवल हम और हमारे दो की भावना और स्वार्थ में डूब गए। तब से ऐसा ग्राफ गिरा है कि आज पूरा समाज ऐसी अवधारणा का शिकार है जहां केवल अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और अति अवसरवादी सोच से पीड़ित है जो कि पूरे राष्ट्र को बीमारू बना देगी।
आज यदि आंकड़ों के दृष्टिकोण से बात की जाए तो अलग-अलग प्रदेशों में नशे की चंगुल में उत्तर प्रदेश में 5.60 करोड़, महाराष्ट्र में 2.06 करोड़, बंगाल में 1.44 करोड़, पंजाब में 1.40 करोड़, मध्य प्रदेश में 1.32 करोड़, तमिलनाडु में 98 लाख, हरियाणा में 91 लाख, छत्तीसगढ़ में 97.20 लाख, उड़ीसा में 86 लाख, आंध्र प्रदेश में भी 86 लाख युवा किसी न किसी प्रकार के नशे के चंगुल में फंस कर जीवन बर्बाद कर चुके हैं।
सवाल यह है कि यह इस स्तर तक कैसे पनप रहा है। नशा न केवल स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या वरन एक ऐसी राष्ट्रीय समस्या है जिसका निवारण करने हेतु हर उस व्यक्ति को आगे आना होगा। जो स्वयं को इस देश का नागरिक समझता है उसको अपनी प्राथमिकता में इसका निवारक सदस्य बनना होगा।
हजारों लोग नशे की लत के कारण, न मिल पाने की स्थिति में आत्महत्या से लेकर परिजनों की हत्या तक कर चुके है। नशे के पैसे ना मिलने पर आत्महत्या जैसे मामलों की बड़ी संख्या है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 2021 में 75000 से अधिक मामले दर्ज किये। हर साल 9000 लोग नशे के कारण आत्महत्या करते हैं। पंजाब, हरियाणा जैसे राज्य में हर वर्ष 15 प्रतिशत वृद्धि हो रही है समस्या की गंभीरता को देखते हुए देश के केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इसका संज्ञान लेते हुए हर स्तर की बैठक लेते हुए इसकी उपलब्धता को समाप्त करने के लिए देश के अंदर और बाहरी सीमाओं की नाकेबंदी और कठोर नियम बनाने के कड़े निर्देश दिए हैं।
नशा केवल एक व्यक्ति या परिवार की समस्या नहीं यह पूरे समाज और राष्ट्र के लिए खतरा है। नशे की समस्या से निपटने के लिए केवल कानून लागू करना है पर्याप्त नहीं है इसे रोकने के लिए एक ऐसे जागरूकता अभियान की, पारिवारिक सहयोग, युवाओं से संवाद, स्कूल एवं कॉलेज में अध्यापकों को प्रहरी की भूमिका निभाते हुए आगे आना होगा। यह इसलिए भी जरूरी है कि आज देश के अंदर ही नहीं देश की बाहरी ताकतें हमारे इस युवा राष्ट्र को उसकी ऊर्जा को खत्म करने का ऐसा षड्यंत्र रच रही है जिससे राष्ट्रीय जो कि वैश्विक स्तर पर तेजी से आगे बढ़ रहा है, उसे रोकने की कोशिश कर रही हैं।
नशे के खिलाफ मुहिम को एक युद्ध की भांति लेना होगा और एकजुट होकर समाज के हर व्यक्ति को जागरूक होकर रोकना होगा तभी इस युद्ध में हम विजय प्राप्त कर सकते हैं। सामाजिक सरोकार से ही नशा मुक्त समाज की परिकल्पना पूरी करके राष्ट्र की युवा शक्ति को देश के विकास एवं आविष्कारों के माध्यम से उत्कृष्ट स्थान तक पहुंचाने का लक्ष्य पूरा हो सकेगा तभी इस युद्ध पर विजय प्राप्त करके विश्व गुरु का स्वप्न साकार हो पाएगा।
(लेखिका मुरादाबाद के हिंदू कॉलेज में मनोविज्ञान विभाग की प्राध्यापिका हैं।)