काशी में कथा सुना रहे मोरारी बापू का विरोध जारी,प्रतीक रूप से सुपुर्दे खाक
काशी में कथा सुना रहे मोरारी बापू का विरोध जारी,प्रतीक रूप से “सुपुर्दे खाक”
—पत्नी के निधन के बाद सूतक में रामकथा सुनाने पर धार्मिक संगठनों में उबाल
वाराणसी,16 जून (हि.स.)। पत्नी के निधन के बाद सूतक में श्री काशी विश्वनाथ के दर्शन करने और रामकथा सुनाने को लेकर आध्यात्मिक गुरू मोरारी बापू साधु—संतों के साथ धामिक संगठनों के निशाने पर है। मोरारी बापू ने काशी के संतों और विद्वत समाज से इसको लेकर माफी भी मांगी है। इसके बावजूद संतों का गुस्सा थम नही रहा। सूतक में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में मोरारी बापू के दर्शन पूजन से नाराज मच्छोदरी इलाके के नागरिकों ने नारेबाजी के बाद प्रतीक रूप से उन्हें “सुपुर्दे खाक” किया। इसमें अतुल कुल,रमेश यादव,पंकज भारद्ववाज,गौरी शंकर पांडेय,मनोज पांडेय आदि शामिल रहे। इसी क्रम में अखिल भारतीय मनीषी परिषद ने कथावाचक मुरारी बापू को सीधे निशाने पर लेकर कहा कि उनका कार्य धर्मविरुद्ध ही नही जन भावना के भी विरुद्ध है। सूतक काल गतात्मा के श्राद्ध का समय होता है। पत्नी के निधन के तत्काल बाद सूतक अवस्था में ही देश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक राजधानी काशी जैसे पवित्र नगर में आकर भगवान श्री विश्वेश्वर विश्वनाथ का स्पर्श दर्शन व पूजन का कृत्य निंदनीय है। इसके बाद पवित्र व्यास पीठ पर बैठकर भगवान श्री रामचंद्र जी की कथा का वाचन सनातनी परम्परा के विरूद्ध है। परिषद के अध्यक्ष डॉ विद्यासागर पाण्डेय ,राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शशि प्रकाश मिश्रा ,राष्ट्रीय महासचिव दिवाकर द्विवेदी ने धार्मिक ग्रंथ धर्म सिंधु का उल्लेख कर कहा कि पति – पत्नी के संबंधों के बीच सूतक काल 10 दिवस का होता है। धर्म सिंधु में साफ तौर पर उल्लेख है कि “दाम्पत्योह पारस्परम देशांतरे कालांतरेपि पूर्व दशाहमेव “
मतलब यह है कि स्त्री पुरुष को भी परस्पर देशांतर और कालांतर में भी पूरा दशाह का पालन करना होता है । सनातन की लोक मान्यता में सूतक काल में जिस घर मे भगवान श्री विष्णु, भगवान श्री शंकर आदि देवों के पूजन होते हैं सूतक काल में उन्हें जल शयन दे दिया जाता है। और उस परिवार द्वारा पूजन कार्य को विराम दे दिया जाता है। इस प्रकार शास्त्र ने पूजन कार्य निषिद्ध किया है। देवों के श्री विग्रह के स्पर्श की बात तो दूर देवालयों में प्रवेश भी वर्जित होता है। कहा गया है कि “यद्यपि शुद्धम् लोक विरुद्धम् न कथनीयम् न करणीयम्” कथावाचक मुरारी बापू द्वारा धर्मशास्त्र की घोर अवहेलना की गई है । लोकनीति व लोक मान्यता की अवहेलना की गई है। कथावाचन के कार्य को जारी रखकर वह अवहेलना और उल्लंघन करते जा रहे हैं । जहां भगवान श्री रामचंद्र की कथा हो रही हो,वहां हनुमानजी महाराज का आवाहन होता है। और वह श्री राम कथा के सर्व प्रथम श्रोता के रूप में उपस्थित होते हैं। सूतक और श्राद्ध इन दोनों का अनिवार्य पारस्परिक संबंध होता है, सूतक काल गतात्मा के श्राद्ध का समय होता है। सूतक से ग्रस्त व्यक्ति द्वारा श्राद्ध कर्म न करके हनुमान जी के समक्ष कथावाचन करना और प्रसाद इत्यादि वितरण घोर निंदनीय है। इनका यह कृत्य “नहिं कोउ अस जन्मा जग माही,प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं” का द्योतक है। बताते चले संतों और धार्मिक संगठनों के विरोध को देख मोरारी बापू ने उनसे क्षमा मांगी है। मोरारी बापू ने रामकथा के समापन के बाद रविवार शाम कहा कि हम यहां आए। भगवान शिवजी के दर्शन करने गए। उन्हें जल चढ़ाया और कथा गाने लगे। यह बात कई पूज्य चरणों और कई महापुरुषों को ठीक नहीं लगी। किसी को ठेस पहुंची हो तो मैं आप सबके प्रति क्षमा प्रार्थी हूं। आप चिंता न करें। हम संवाद करते रहेंगे, गाते रहेंगे। इसके लिए मैं मानस क्षमा कथा भी कहूंगा।
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