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साक्षात्कार : जीवन में ‘मां’ के किरदार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता : काजोल

साक्षात्कार : जीवन में ‘मां’ के किरदार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता : काजोल

बॉलीवुड की दिलखुश और बेबाक अदाकारा काजोल अपने खास अंदाज से सालों से दर्शकों का मनोरंजन करती आ रही हैं। अब वह फिल्म ‘मां’ के जरिए हॉरर जॉनर में कदम रखने जा रही हैं, जो 27 जून को सिनेमाघरों में रिलीज होगी। फिल्म की रिलीज से पहले काजोल ने ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से खास बातचीत की। उन्होंने फिल्म की शूटिंग से जुड़ी कुछ रोचक बातें शेयर कीं और अपने करियर के अलग-अलग पहलुओं पर भी खुलकर बात की। पेश है इस बातचीत के कुछ खास अंश।

ये आपकी पहली हॉरर फिल्म है, आपको इस कहानी ने क्यों आकर्षित किया ?

असल में ये फिल्म शुरुआत में एक हॉरर फिल्म के रूप में नहीं बनाई जा रही थी। मेरे पास एक कॉन्सेप्ट आया था, जो काली और रक्तबीज की कहानी पर आधारित था। यह कहानी मुझे बचपन से बहुत प्रिय रही है, जिसे मैं हमेशा सुनती आई हूं। जब ये विचार मेरे पास आया कि अगर आज के समय में ऐसा कुछ घटे तो क्या होगा, तो मुझे ये आईडिया बेहद रोमांचक लगा। हमने पहले तय किया था कि इसे एक थ्रिलर फिल्म की तरह लिखा जाएगा। जब फिल्म की स्क्रिप्ट पूरी हुई, तो हमें एहसास हुआ कि इस कहानी की गहराई और प्रभाव को दर्शकों तक पहुंचाने के लिए इसे एक हॉरर-थ्रिलर के रूप में पेश करना ज्यादा सही रहेगा।

असल जिंदगी में मां का किरदार कितना बदला है?

मुझे लगता है कि असल जिंदगी में मां का किरदार आज भी बहुत कुछ वैसा ही है, जैसा पहले था। जब भी कोई गलत काम करता है, तो सबसे पहले यही कहा जाता है कि ‘क्या तुम्हारी मां ने तुम्हें कुछ नहीं सिखाया?’ हमारे समाज की सोच में मां की भूमिका गहराई से जमी हुई है। संस्कारों की जड़ में मां होती है, क्योंकि वही घर पर बच्चों के साथ सबसे ज़्यादा वक्त बिताती हैं, इसलिए बच्चों के व्यवहार पर उनका सीधा असर होता है। हालांकि, आज के समय में यह भी सच है कि हम मांओं के योगदान को उतना महत्व नहीं दे रहे, जितना देना चाहिए। उनके त्याग और मेहनत को हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं।

ये फिल्म आपके लिए शारीरिक और मानसिक रूप से थका देने वाली थी ?

बिल्कुल सही, हॉरर फिल्मों की अपनी एक अलग शैली और प्रस्तुति होती है। इस फिल्म की कहानी में गहराई और रहस्य छिपा है, जो सीधे हमारे मन-मस्तिष्क पर असर डालती है। इसमें एक्शन, वीएफएक्स जैसे तकनीकी पहलुओं के साथ-साथ इमोशनल कनेक्ट भी बनाए रखना जरूरी था। इसी वजह से यह फिल्म सिर्फ शारीरिक रूप से नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी बेहद थका देने वाली रही।

आपको हॉरर कॉमेडी जॉनर में कदम रखने में इतना समय क्यों लगा ?

सच कहूं तो मेरे करियर में मुझे हॉरर फिल्मों के ज्यादा ऑफर नहीं मिले। जो स्क्रिप्ट्स मिलीं, उनमें वो गहराई या आकर्षण नहीं था जो मुझे उत्साहित कर सके। हमारे समय में जब हॉरर फिल्में बनाई जाती थीं, तब कहानी की बजाय किरदारों और डराने वाले एलिमेंट्स पर ज्यादा ध्यान दिया जाता था। शायद यही वजह थी कि मुझे उस दौर की हॉरर फिल्मों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं आई।

फिल्म की शूटिंग के दौरान आपको कौन सी चीज सबसे चुनौतीपूर्ण लगी?

फिल्म में मेरे लिए सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा एक्शन सीन्स करना था, क्योंकि मैंने इससे पहले कभी एक्शन नहीं किया था। जब खुद उन दृश्यों को किया, तो मैंने इसके पीछे की तकनीकी बातें समझीं और तभी से मैंने अपने पति अजय देवगन को और भी ज्यादा सम्मान देना शुरू कर दिया, आखिर वो इतने सालों से लगातार एक्शन करते आ रहे हैं (हंसते हुए)। फिल्म में एक सीन है जहां काली मां की मूर्ति से पर्दा हटता है, उस पल ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया। ऐसा लगा जैसे मां की भक्ति के साथ-साथ उनके सामने अभिनय करने का भी सौभाग्य मिल रहा है। वो पल मेरे लिए सबसे भावुक और यादगार था।

फिल्मों के चुनाव करने के तरीकों में क्या बदलाव आया है?

अब मैं स्क्रिप्ट को पहले से कहीं ज्यादा अहमियत देती हूं। मेरे लिए कहानी की गहराई सबसे ज़रूरी है। यही वजह है कि अब मैं पहले से ज़्यादा चयनात्मक हो गई हूं। मैं उन प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता देती हूं जिनमें दमदार कहानी हो और किरदार भी कुछ कहने लायक हों। हालांकि, ऐसा बहुत कम होता है जब सारी चीज़ें, कहानी, किरदार, निर्देशक एक साथ सही बैठती हैं।

महिला केंद्रित फिल्मों की संख्या में कितना बदलाव आ रहा है?

हां, क्योंकि अब समय बदल चुका है और दर्शकों की सोच भी पहले से काफी विकसित हो गई है। इसका बड़ा श्रेय मैं ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को देना चाहूंगी। ओटीटी के आने से दर्शकों ने अलग-अलग भाषाओं और शैलियों की कहानियां देखनी शुरू की हैं, और सबटाइटल्स की वजह से भाषा अब कोई बाधा नहीं रही। आज सिनेमा का स्तर काफी ऊपर उठ गया है। अब सिर्फ काम चलाने के लिए फिल्म बनाना मुमकिन नहीं है। दर्शक अब अच्छी और गहरी कहानी की मांग करते हैं।

आपने तीनों खान के साथ काम किया है, क्या दोबारा उनके साथ काम करना चाहेंगी?

आज शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान और अजय देवगन जैसे सितारे अपने-अपने तय रास्तों पर चल रहे हैं। हर कोई अपने पसंदीदा जॉनर में काम कर रहा है, लेकिन साथ ही वे लगातार नए प्रयोग भी कर रहे हैं। शाहरुख हो या आमिर ये सभी बेहद एक्सपेरिमेंटल हैं और हर फिल्म में कुछ नया दिखाने की कोशिश करते हैं। इन सभी का करिअर उस दौर में शुरू हुआ था जब न तो सोशल मीडिया था, न डिजिटल प्रमोशन का सहारा। इन्होंने अपनी मेहनत और टैलेंट के बल पर स्टारडम हासिल किया। यही वजह है कि आज भी वे अपनी फिल्मों के जरिए जोखिम उठाने से पीछे नहीं हटते और दर्शकों को कुछ नया देने की कोशिश करते हैं।

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