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ईचा-खरकई डैम पुनर्निर्माण के खिलाफ सीमावर्ती गांवों में ग्रामीणों ने दी आंदोलन तेज करने की चेतावनी

ईचा-खरकई डैम पुनर्निर्माण के खिलाफ सीमावर्ती गांवों में ग्रामीणों ने दी आंदोलन तेज करने की चेतावनी

पश्चिम सिंहभूम, 1 जून (हि.स.)। पश्चिम सिंहभूम जिला स्थित तिरिंग में रविवार को झारखंड-ओडिशा सीमावर्ती इलाकों में प्रस्तावित ईचा-खरकई डैम के पुनर्निर्माण को लेकर एक बार फिर से जनाक्रोश फूट पड़ा। तिरिंग प्रखंड के ग्राम रामबेड़ा में ईचा-खरकई डैम विरोधी संघ कोल्हान की ओर से एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न गांवों के सैकड़ों प्रभावित ग्रामीणों ने हिस्सा लिया और अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया।

जनसभा की अध्यक्षता सामाजिक कार्यकर्ता कालीचरण कालुंडिया ने की, जबकि संचालन ग्राम प्रधान महावीर महतो ने किया। इस अवसर पर रामबेड़ा, मुड़दा, चिपीडीह, लंडुवा, कुलुगुटु, देवगम, मंगुवा, तुरीबासा और विजयबासा समेत दर्जनों गांवों के ग्रामीण उपस्थित थे।

सभा के दौरान ग्रामीणों ने झारखंड जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) द्वारा ईचा डैम पुनर्निर्माण के लिए दी गई सहमति का विरोध किया। सभा को संबोधित करते हुए संघ के अध्यक्ष बिर सिंह बिरुली ने कहा कि अगर हम सब एकजुट रहें, तो कोई भी सरकार हमें विस्थापित नहीं कर सकती। सरकारें आदिवासी हितों की दुहाई देकर उद्योगपतियों के फायदे के लिए काम कर रही हैं।

ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि डैम का पानी किसानों की रबी फसल के नाम पर निजी उद्योगों, खासकर रूंगटा स्टील जैसे उद्योगपतियों को दिया जाएगा, जो कि एक साजिश है।

सभा में रेयांश समड ने कहा कि आपसी एकता ही विस्थापन से बचाव का एकमात्र रास्ता है। उन्होंने घोषणा की कि उड़ीसा के बहाल्डा विधायक के आवास का घेराव कर वहां भी विरोध दर्ज कराया जाएगा ताकि टीएसी तक आवाज पहुंचे।

सभा में यह भी याद दिलाया गया कि अक्टूबर 2014 में टीएसी की उपसमिति ने इस परियोजना को रद्द करने और प्रभावित रैयतों को उनकी जमीन लौटाने की सिफारिश की थी।

मार्च 2020 में भारी विरोध के बाद हेमंत सोरेन सरकार ने परियोजना को स्थगित कर दिया था। लेकिन अब सरकार के जरिए इस परियोजना को नए स्वरूप में लागू करने की कोशिश की जा रही है। पहले जहां 87 गांव डूब क्षेत्र में आते थे, अब केवल 18 गांवों की बात कही जा रही है, जिसे ग्रामीण छलावा मान रहे हैं।

सभा में संघ के सक्रिय सदस्य गुलिया कालुंडिया, बिरसा गोडसोरा, रॉबिन अल्डा, श्याम कुदादा, कृष्ण बानरा, पन्नालाल समड, घनश्याम समड, चैतन्य बास्के समेत कई सामाजिक कार्यकर्ता एवं ग्रामीण उपस्थित रहे।

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