मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने महान वीरांगना रानी दुर्गावती को बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित की, इतनी महान थी रानी
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने महान वीरांगना रानी दुर्गावती को बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित की, इतनी महान थी रानी
भाेपाल, 24 जून (हि.स.)। गोंडवाना साम्राज्य की महारानी अदम्य शौर्य, पराक्रम और स्वाभिमान की प्रतीक वीरांगना रानी दुर्गावती का आज (मंगलवार काे) बलिदान दिवस है। ऐसे में रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर देश उन्हें याद कर श्रद्धांजलि दे रहा है। इस मौके मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किये हैं।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने सोशल मीडिया एक्स पर अपने पोस्ट में लिखा परम पराक्रमी, वीरांगना रानी दुर्गावती जी के बलिदान दिवस पर सादर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। वीरता, साहस एवं त्याग की प्रतिमूर्ति रानी दुर्गावती जी का मातृभूमि की रक्षा के लिए शौर्य, रणकौशल देश के गौरवशाली इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है, जो बेटियों के लिए हमेशा प्रेरणादायक रहेगा।
उल्लेखनीय है कि रानी दुर्गावती न केवल गोण्ड जनजाति की अपितु संपूर्ण भारत की आदर्श थी। जिसका चरित्र कहता है कि नारी अबला नहीं सबला है। 5 अक्तूबर 1524 को महोबा राजा कीर्ति सिंह के घर में दुर्गावती का जन्म हुआ। गुप्त नवरात्रि का उत्सव चल रहा था। अष्टमी का दिन था, तो उसका नाम दुर्गा रखा गया। बाल्य काल में ही पिता ने उसे शस्त्र चलाना सिखाया और अपने कौशल के कारण दुर्गावती कुछ दिनों में शस्त्र चलाने में प्रवीण हो गई। कीर्ती आसपास के क्षेत्र में फैल गई। गोण्डवाना क्षेत्र के पराक्रमी राजा वीर दलपत शाह के साथ दुर्गावती का विवाह हुआ। किंतु प्रतापी राजा शाह की अचानक मृत्यु हो गई, जिसके बाद सभी भार रानी दुर्गावती के कंधों पर आ गया। रानी ने जब राज शासन सम्भाला तो उसकी न्याय व्यवस्था, कर प्रणाली, लोक कल्याणकारी योजनाएं, कृषि एवं जल प्रबंधन, सभी अध्ययन करने योग्य है।
प्रजा की सुखाकारी के लिए रानी सदैव प्रयत्नशील थी। आर्थिक सम्पन्नता कैसी थी ? – इसका यदि विचार करते हैं तो रानी दुर्गावती के शासन में प्रजा को सोने की मुद्राओं में कर देने की योजना भी थी। हाथी का राज्य में भ्रमण और उसके माध्यम से कर वसूली होती थी। किसी व्यक्ति की कर देने की क्षमता नहीं है, व्यक्ति निर्धन है तो उस पर कर देने के लिए कोई दबाव नहीं डाला जाता था। रानी का अपने राज्य की कृषि व्यवस्था के बारे में बहुत ध्यान था। किसानों के प्रति रानी का रवैया संवेदनशील रहा। पानी के बारे में भी कई योजनाएं बनी। उस समय बने तालाब जैसे आधार ताल, रानी ताल को हम आज भी मप्र की संस्कारधानी जबलपुर एवं आसपास के क्षेत्र में देख सकते हैं।
इतिहासकार प्रो. आनन्द सिंह लिखते हैं, युद्ध के मैदान में रानी स्वयं सेना का नेतृत्व करती थी। उन्होंने अपने 40 वर्ष से कम आयु में भी 52 युद्ध लड़े। उसकी सेना में पैदल सेना, घुड़ सवारों के साथ हाथी का दल भी रहता था। सेना में एक महिलाओं का भी दल रहा करता। अपने राज्य की युवतियों को युद्ध कौशल का प्रशिक्षण देने की वह आग्रणी रहीं। जब रानी के राज्य की कीर्ति चहुदिश फैल रही थी। दिल्ली में अकबर के दरबार में भी रानी के पराक्रम की चर्चा सुनने को मिली। अकबर ने आक्रमण की योजना बनाई। सुबेदार आसफ खां को भेजा गया। उन्हें अकबर की शरण में आने के लिए कहा गया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। भयंकर युद्ध हुआ। पहले दो युद्धों में रानी ने अकबर की सेना को धूल चटाकर भगा दिया, लेकिन तीसरा अंतिम युद्ध रानी के लिए धोखा सिद्ध हुआ, उनके अपने ही कुछ लोग अकबर से जा मिले। दूसरी ओर अकबर का तोपखाना बहुत बड़ा था, जबकि रानी बिना तोपखाने के युद्ध कर रही थी। सिंगोर गढ़ के आसपास रात के समय रानी की सेना जब घाटी में विश्राम कर रही थी तब अकबर की सेना ने अचानक हमला कर दिया।
रानी के सैनिकों ने पराक्रम का परिचय दिया। रानी स्वयं भी दो हाथों में तलवार लेकर बहुत बहादुरी के साथ लड़ रही थी। उसका वह रूप मानो रणचंडी का रूप था, पर तभी एक तीर अचानक उसकी एक आँख में लगा। उस हमले से सवरने के पूर्व ही और एक तीर दूसरी आँख पर जब लगा तो रानी गिर पड़ी। उसे अपनी पराजय दिख रही थी पर अपना शरीर शत्रु सेना के हाथ न लगे इस विचार से अत्यंत विश्वसनीय सैनिकों को अपने पर वार करने को कहा परन्तु वह ऐसी हिम्मत नहीं कर सके। तब रानी ने स्वयं ही अपने पर वार कर वीरगति को प्राप्त करने का निर्णय लिया। 24 जून 1564 को एक वीरांगना ने अपने प्राण न्योछावर कर सम्पूर्ण भारत को संदेश दिया कि शत्रु के साथ लढ़ते-लढ़ते वीरगति प्राप्त करना स्वीकार है पर शरणागति कभी भी नहीं हो सकती।
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