वर्ल्ड लिवर डे: शराब नहीं, मेटाबॉलिक डिजीज फैटी लिवर के पीछे छुपा बड़ा खतरा!
पारंपरिक रूप से यह माना जाता रहा है कि शराब का सेवन ही फैटी लिवर का मुख्य कारण है, लेकिन अब एक नई स्थिति सामने आई है। मेटाबॉलिक एसोसिएटेड फैटी लिवर डिजीज (एमएएफएलडी) के कारण भी यह बीमारी बढ़ रही है। इस श्रेणी में वे सभी लोग शामिल हैं जो डायबिटीज, मोटापा, उच्च रक्तचाप या कोलेस्ट्रॉल से जूझ रहे हैं। ऐसे व्यक्तियों को मेटाबॉलिक सिंड्रोम पीड़ित माना जाता है। हाल ही में वर्ल्ड लिवर डे के अवसर पर एसआर कल्ला हॉस्पिटल के वरिष्ठ गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ. मुकेश कल्ला और एमजीएच के डॉ. अजय शर्मा ने इस विषय पर महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि जिन लोगों की कमर पर अत्यधिक चर्बी है और जिनका ब्लड शुगर या बीपी हमेशा ऊंचा रहता है, उनमें फैटी लिवर का खतरा काफी बढ़ जाता है। फैटी लिवर की अनदेखी करना अत्यंत घातक हो सकता है, क्योंकि ऐसे मरीजों में हृदय रोग का जोखिम 70% तक बढ़ जाता है और लिवर कैंसर का खतरा सामान्य व्यक्तियों की तुलना में दोगुना हो सकता है।
सीके बिड़ला हॉस्पिटल के वरिष्ठ गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ. अभिनव शर्मा के अनुसार, लिवर को शरीर की ‘रासायनिक फैक्ट्री’ कहा जाता है। यह प्रोटीन, वसा और पित्त के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब हम जरूरत से ज्यादा कैलोरी और वसा का सेवन करते हैं और शरीर को पर्याप्त श्रम नहीं देते, तो यह वसा लिवर में जमा होने लगती है। यदि लिवर में वसा की मात्रा 10% से अधिक हो जाती है, तो इसे फैटी लिवर कहा जाता है। भारत में यह समस्या व्यापक रूप से फैली हुई है, और हर तीसरा व्यक्ति इससे प्रभावित है। भारतीय स्वास्थ्य के आंकड़ों के अनुसार, हर साल लिवर सिरोसिस के लिए 10 लाख से अधिक नए मरीज भारत में सामने आते हैं, जबकि लिवर से संबंधित बीमारियों के कारण लगभग 2.7 लाख लोगों की मृत्यु होती है।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में हर तीसरे व्यक्ति को फैटी लिवर की समस्या है। ईएचसीसी के वरिष्ठ गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ. हर्ष उदावत का कहना है कि यह समस्या धीरे-धीरे लिवर सिरोसिस और इसके बाद लिवर फेलियर की स्थिति तक पहुंच सकती है, जो गंभीर स्वास्थ्य संकट उत्पन्न कर सकती है।
लिवर की स्वास्थ्य स्थिति को जानने के लिए फाइब्रोस्कैन तकनीक एक नई उम्मीद के रूप में उभर कर आई है। जीवन रेखा हॉस्पिटल के वरिष्ठ गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ. साकेत अग्रवाल के अनुसार, यह अल्ट्रासाउंड आधारित तकनीक फैटी लिवर, लिवर सिरोसिस, और लिवर कैंसर की जांच में अत्यधिक प्रभावकारी सिद्ध हुई है। फाइब्रोस्कैन प्रक्रिया मात्र 5 मिनट में लिवर की स्थिति का स्पष्ट आकलन कर देती है, जबकि पारंपरिक बायोप्सी में आमतौर पर 5 घंटे से भी अधिक समय लगता है। यह तकनीक लिवर में होने वाली सिकुड़न और वसा की मात्रा को सटीकता से दर्शाने की क्षमता रखती है, तकनीक के माध्यम से मरीजों को शीघ्र और सटीक निदान प्राप्त होता है।
इस प्रकार, फैटी लिवर के प्रति जागरूकता और उचित जांच विधियों का उपयोग करके, इस गंभीर स्थिति के प्रभाव को समय पर नियंत्रित किया जा सकता है।