अदृश्य सीमाएँ: भारत-पाक के निशाने पर मासूम, बढ़ते शिकार मामले!
भारतीय मछुआरे गौरव राम आनंद की दुखद कहानी, जो कि 52 वर्ष के थे, ने हाल ही में भारतीय और पाकिस्तानी मीडिया में हलचल मचा दी है। फरवरी 2022 में कराची की डॉक्स पुलिस द्वारा उन्हें अवैध रूप से पाकिस्तान की समुद्री सीमा में प्रवेश करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद, मजिस्ट्रेट द्वारा उन्हें दोषी ठहराए जाने के बाद कराची के मलिर जेल में रखा गया। हाल ही में, 27 मार्च 2025 को, आनंद ने जेल के भीतर आत्महत्या कर ली, लेकिन इस मामले की कोई गंभीर जांच नहीं की गई। यह सबक दिलाने वाला है कि भारतीय कैदी के पास पाकिस्तान की जेल में फांसी लगाने के लिए आवश्यक सामग्री कहां से आई।
आनंद की मृत्यु से पहले, एक अन्य भारतीय मछुआरा बाबू ने भी इसी जेल में 23 जनवरी 2025 को अपनी जान गंवाई थी। बाबू ने अपनी सज़ा पूरी कर ली थी, फिर भी उन्हें रिहा नहीं किया गया। पिछले दो वर्षों में, पाकिस्तान की जेलों में आठ भारतीय मछुआरों की मौत हो चुकी है, और अधिकांश मछुआरे गुजरात राज्य से आते हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच 2008 में हुए एक समझौते के तहत, दोनों देश हर साल दो बार हिरासत में लिए गए नागरिक कैदियों और मछुआरों की सूची साझा करते हैं। लेकिन, ताजा अमेरिकी आंकड़ों के अनुसार, पाकिस्तान ने 266 भारतीय कैदियों की सूची में 217 मछुआरों का उल्लेख किया है, जबकि भारत ने केवल 81 पाकिस्तानी मछुआरों का संदर्भ दिया है।
हाल में, ऑल इंडिया फिशरमैन एसोसिएशन ने पाकिस्तान की फिशरमैन कोऑपरेटिव सोसाइटी को सूचित किया कि लापता भारतीय मछुआरों की वास्तविक संख्या 350 से अधिक हो सकती है। यह चिंताजनक है कि जब कोई भारतीय मछुआरा पकड़ा जाता है, तो उसे अक्सर न्यायिक प्रक्रिया के बिना लंबा समय जेल में बिताना पड़ता है। मछुआरे तटीय क्षेत्रों में मछलियों की कमी के कारण समुद्र की गहराई में जाने के लिए मजबूर होते हैं, जिससे वो अक्सर एक अदृश्य सीमा को पार कर जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप गिरफ्तारी होती है।
भारत और पाकिस्तान के मछुआरों का विवादित पानी में जाना न केवल उनके लिए खतरनाक है, बल्कि यह इसलिए भी गंभीर है क्योंकि दोनों देशों की सरकारें इनकी मौलिक जरूरतों और बुनियादी अधिकारों की अनदेखी करती हैं। कई बार मछुआरों को नशीले पदार्थों की तस्करी के लिए गलत तरीके से फंसाया जाता है, जबकि असली अपराधी अपनी विशाल वित्तीय संपत्ति के साथ सुरक्षित भाग निकलते हैं। इससे भी अधिक, ये गरीब मछुआरे जेल में बंद रहते हैं, जबकि उनके पास रिहाई के लिए पैसे नहीं होते।
सचाई यह है कि इन मछुआरों की जिंदगी सुरक्षित होनी चाहिए। लगातार हो रहे औद्योगिक विकास और समुद्र में प्रदूषण के कारण मछलियों की कमी एक बड़ी समस्या बन चुकी है। गुजरात और सिंध के बीच के जलक्षेत्र में ज्वार-भाटा मछुआरों के लिए और चुनौती पेश करता है। आरोपों के अनुसार, जब भारतीय मछुआरे पकड़े जाते हैं, तो उनकी नावें अक्सर सरकारी अधिकारियों द्वारा जब्त कर ली जाती हैं।
यह सभी घटनाक्रम इस बात का प्रमाण है कि दोनों देशों के बीच मछुआरों की स्थिति को सुधारने की आवश्यकता है। 2008 के समझौते के तहत, विदेशियों की कैदियों की सूची को साल में केवल दो बार के बजाय चार बार साझा करने का प्रावधान है, जिससे दोनों देशों के नागरिकों को राहत पहुंचाई जा सकती है। दोनों सरकारों को चाहिए कि वे इन मुद्दों पर ध्यान दें और मछुआरों की सुरक्षा और अधिकारों को सुनिश्चित करें।