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प्रेमानंद महाराज की 40 साल की अनुपस्थिति: गांव के स्कूल की दुर्दशा, मित्रों की अनकही कहानी!

कानपुर के अखरी गांव की एक खासियत यह है कि यहां मौजूद शिव मंदिर के पास बैठकर महिलाएं पूजा करती हैं और गांव के लोग आपस में देश-दुनिया की चर्चा करते हैं। यह दृश्य प्रेमानंद महाराज की जन्मस्थली का है, जिनका नाम सुनते ही गांववासी तपाक से बताते हैं कि वे यहीं के हैं। वृंदावन के राधा केली कुंज आश्रम में प्रेमानंद का जन्मदिवस मना रहा है, लेकिन गांव का माहौल सामान्य बना हुआ है। प्रेमानंद पिछले 40 वर्षों से गांव नहीं लौटे हैं, लेकिन उनके नाम का असर यहां के लोगों पर आज भी देखा जा सकता है। दैनिक भास्कर की टीम ने इस गांव का दौरा किया, जहां प्रेमानंद के परिवार के बारे में जानकारी एकत्र की गई।

हमारी टीम कानपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर सरसौल क्षेत्र के अखरी गांव पहुँची। गांव में प्रवेश करने पर हमें एक प्राइमरी स्कूल दिखाई दिया, जिसके सामने एक गली गई थी। इस गली में चलते हुए हमें प्रेमानंद महाराज का घर मिला, जो अब दो मंजिला बन चुका है। घर की नेम-प्लेट पर लिखा है “श्रीगोविंद शरणजी महाराज जन्मस्थली।” उनके बड़े भाई गणेश दत्त ने बताया कि उन्होंने बहुत कम उम्र में घर छोड़ दिया था और उसके बाद से वापस नहीं आए। गांव के लोगों ने उन्हें हमेशा श्रद्धा के साथ याद किया है।

प्रेमानंद ने अपने जीवन में जब पहली बार घर छोड़ा, तब उनकी उम्र केवल 13 साल थी। गणेश दत्त ने बताया कि उन्होंने गांव में शिव मंदिर की स्थापना की थी और वहीं से उनकी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत हुई। प्रेमानंद की भक्ति सिर्फ शिव में ही नहीं, बल्कि शिव के प्रति उनकी आराधना ने उन्हें आगे बढ़ाया। वह एक बार नहीं, बल्कि कई बार शिव मंदिर में भक्ति के लिए बिताए गए समय को याद करते हैं, जो उनकी सोच और जीवन पर गहरा प्रभाव डाला।

गांववालों ने हमें एक पुरानी, जर्जर बिल्डिंग दिखाई, जहां प्रेमानंद ने स्कूल की पढ़ाई की थी। इस बिल्डिंग के अंदर अब भी पुराने स्कूल का बोर्ड लगा है, और यही वह जगह थी जहां से उन्होंने आध्यात्मिकता के रास्ते पर बढ़ना शुरू किया। उन्होंने गीता का पाठ हो या शिव की आराधना, सब कुछ बचपन से सीखा था।

प्रेमानंद महाराज ने जब घर छोड़ा, तब उन्होंने संन्यास लेने का निर्णय किया। वह विभिन्न स्थानों पर घूमते रहे, जहां उन्होंने ध्यान और साधना की। उनके जीवन के कई महत्वपूर्ण मोड़ रहे, जैसे कि वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में उनका स्वास्थ्य खराब होना और चिकित्सकों द्वारा उन्हें वृंदावन जाने की सलाह दी गई। वहां पहुँचकर उन्होंने राधा रानी की भक्ति को अपने जीवन का आधार बनाया।

अंततः, प्रेमानंद महाराज वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण और राधा के चरणों में आत्मिक संतोष प्राप्त कर पाए। उनकी भक्ति यात्रा ने उन्हें ना सिर्फ आध्यात्मिक ऊँचाई तक पहुंचाया, बल्कि समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान भी दिलाया। उनका जीवन हमें यह सीखाता है कि अगर मन में सच्ची श्रद्धा और लगन हो, तो किसी भी कठिनाई को पार कर सकता है। प्रेमानंद महाराज आज समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा पूजा जाते हैं और उनका प्रभाव आज भी उन्हीं की जन्मस्थली अखरी गांव में महसूस किया जाता है।

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