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बठिंडा में बिजली बोर्ड कर्मचारियों का हल्ला बोल: निजीकरण के खिलाफ नारेबाजी, स्थायी भर्ती की मांग।

पंजाब के बठिंडा में आज बिजली बोर्ड के कर्मचारियों ने एक महत्वपूर्ण गेट रैली का आयोजन किया, जो सिरकी बाजार स्थित बिजली कार्यालय के सामने हुई। इस रैली का उद्देश्य राज्य सरकार के खिलाफ आवाज उठाना और बिजली बोर्ड के निजीकरण का विरोध करना था। प्रदर्शन में शामिल कर्मचारियों का यह स्पष्ट कहना था कि वे बिजली विभाग के निजीकरण को किसी भी हालत में स्वीकार नहीं करेंगे। यह रैली राज्य कमेटी बिजली कर्मचारी संयुक्त मंच के निर्देश पर आयोजित की गई, जिसमें कर्मचारियों ने एकजुट होकर अपने मत का इजहार किया।

प्रदर्शनकारियों ने विशेष रूप से चंडीगढ़ यूटी के बिजली बोर्ड को निगम में बदलने और यूपी बिजली निगम को निजी हाथों में सौंपने का विरोध किया। उनका मानना था कि इन कदमों से न सिर्फ कर्मचारियों का भविष्य खतरे में पड़ेगा बल्कि इससे आम जनता को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। रैली में शामिल सभी कर्मचारियों ने एक स्वर में मांग की कि सरकारी संस्थानों की बिक्री तुरंत रोकी जाए और इसके स्थान पर स्थायी भर्ती की प्रक्रिया को फिर से शुरू किया जाए।

इस आंदोलन में शामिल नेताओं ने किसानों के संघर्ष का समर्थन करते हुए उनकी समस्याओं को भी प्रमुखता से उठाया। साथ ही, उन्होंने उन शिक्षकों का भी समर्थन किया जो संगरूर में शिक्षक हड़ताल पर हैं, यह कहते हुए कि कई संस्थानों का निजीकरण किया गया है और इस बारे में जागरूकता फैलाना आवश्यक है। प्रदर्शनकारियों में प्रमुख नेता जैसे सौरभ साथी, अरुण कुमार त्रिपाठी, अजायब सिंह सोहल, हरदीप सिंह, सीता राम, दुर्गा दत्त, भीम सेन, अजय सिंह आदि भी शामिल रहे, जिन्होंने रैली को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

यह प्रदर्शन इस बात का संकेत है कि कर्मचारियों में गहरी असंतोष की भावना है और वे किसी भी प्रकार के सरकारी विभागों के निजीकरण को रोकने के लिए सतत प्रयासरत हैं। उनका मानना है कि यदि सरकारी संस्थानों को निजी हाथों में सौंप दिया गया तो इससे न केवल उनके अधिकारों का हनन होगा, बल्कि सामाजिक न्याय की भावना को भी खतरा लगेगा। ऐसे में, कर्मचारियों ने एकजुटता के साथ अपनी मांगें रखने का निश्चय किया है, और उन्हें उम्मीद है कि उनकी आवाज सुनकर सरकार उचित कदम उठाएगी।

इस तरह के आंदोलनों का आयोजन न केवल कर्मचारियों की समस्याओं को उजागर करने का एक माध्यम है, बल्कि यह समाज के अन्य तबकों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है। बठिंडा में हुए इस प्रदर्शन ने न सिर्फ बिजली बोर्ड के कर्मचारियों के मुद्दों को सामने लाया, बल्कि यह भी दिखाया कि किस प्रकार से संघठित होकर वे अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं। इस आंदोलन से स्पष्ट है कि आने वाले समय में कर्मचारियों के मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और सरकार को उनके सवालों का संतोषजनक समाधान प्रदान करना होगा।

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