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खेल हारना और जीतना दोनों सिखाते हैं: अभिनव बिंद्रा

खेल हारना और जीतना दोनों सिखाते हैं: अभिनव बिंद्रा

पद्मभूषण अभिनव बिंद्रा कोटा में स्कूली विद्यार्थियों से हुए रूबरू कोटा, 15 दिसंबर (हि.स.)। बीजिंग ओलम्पिक, 2008 में 10 मीटर राइफल शूटिंग में देश के प्रथम व्यक्तिगत स्वर्णपदक विजेता व पद्मभूषण अभिनव बिंद्रा ने कहा कि खेल आपको हारना और जीतना दोनों सिखाते हैं। इसलिए स्कूल की खेलकूद प्रतियोगिताओं में अवश्य भाग लें। उन्हाेंने बच्चाें काे हर हाल में अपने लक्ष्य के लिए ईमानदारी से हार्ड वर्क करने का मंत्र भी दिया।

पद्मभूषण बिंद्रा रविवार को एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट के एक समारोह में स्कूली विद्यार्थियों से मिले और उनसे बातचीत की।इस मौके पर बिन्द्रा ने स्कूली विद्यार्थियों से खुलकर संवाद किया और उन्हें खेलकूद में हमेशा आगे रहने के लिए प्ररित किया।बच्चों के एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि 10-11 साल की उम्र तक मुझे स्पोर्ट्स से नफरत थी। स्कूल में फिजिकल एजुकेशन दूर रहता था। बाद में एक कोच ने मेरे टेलेंट को परखा और उन्होंने गाइड किया। बिन्द्रा ने कहा कि वे कन्वेंशनल नहीं थे, लेकिन रोज हार्ड वर्क करना और प्रतिदिन अपना सर्वश्रेष्ठ करना उनकी आदत थी। शूटिंग कोच कर्नल ढिल्लन ने मुझे हारने के बाद जीतना सिखाया। आप भी जेईई या मेडिकल की तैयारी करते समय ईमानदारी से अपने लक्ष्य के लिये हार्ड वर्क करें। आपको कोई रोक नहीं सकता।

एक सवाल के जवाब में उन्हाेंने बताया कि सिडनी ओलिम्पिक में 17 साल की उम्र में मैं सबसे जूनियर था। फाइनल मुकाबले में सभी 10 शॉट बेकार हो गए थे क्याेंकि नीचे टाइल्स हिल रही थी। मैं निराश होकर सबसे पहले मां से मिला। मां ने कहा कि तुम मेरे बेटे हो अब सिर्फ गोल्ड मेडल के लिए ही खेलना। भारत आकर मैंने हिलती हुई टाइल्स पर खूब प्रैक्टिस की। मेरा लक्ष्य सिर्फ गोल्ड मेडल था। उन्हाेंने बताया कि बीजिंग ओलम्पिक में 206 देशों के 10,500 एथलीट पहुंचे थे। मुझ पर प्रेशर बहुत था, लेकिन मुझे मां के बोल याद रहे। मैने सांसों को नियंत्रित कर दिमाग को शांत रखा और फाइनल में 10 में से 10 शॉट सही खेलकर देश को गोल्ड मेडल दिलाया। बिन्द्रा ने कहा कि आप जब भी प्रेशर महसूस करें, अपनी मां से 10 मिनट बात जरूर कर लें, आप प्रेशर में जीना सीख लेंगे।एक सवाल ओ जवाब में अभिनव बिंद्रा ने कहा कि कोई भी प्रतिस्पर्धा आपको सक्सेस की ओर ही बढ़ाती है। कंफर्ट जोन से बाहर निकलें और अपने भीतर सफलता पाने की भूख जगाएं। प्रेशर के समय धैर्य, साहस और एकाग्रता रखें। गलतियाें से सबक लेकर आगे बढें। सेल्फ अवेयरनेस से ही आपका टेलेंट सामने आता है। आप हार्डवर्क और रेगुलर प्रेक्टिस के साथ हर कॉम्पिटिशन में सक्सेस पा सकते हैं।

एक बच्चे के सवाल पर उन्हाेंने बताया कि जरा गौर करें, इतनी बड़ी आबादी वाले भारत में खेलने वाले युवाओं की संख्या कितनी है। हमारी युवा आबादी स्पोर्ट्स को चुनेगी, तभी हम मेडल में भी आगे बढ़ेंगे। उन्हाेंने 2036 में अहमदाबाद में वर्ल्ड ओलम्पिक कराने के प्रयास हाे रहे हैं।उन्हाेंने कहा कि कोई भी सफलता एक दिन की मेहनत से नहीं मिल जाती। मैंने 15 साल रेगुलर प्रैक्टिस की। बिंद्रा ने बच्चाें काे मंत्र देतेहुए कहा कि अपने लक्ष्य को पाने के लिए आपका वातावरण, प्रतिस्पर्धा का लेवल, ट्रेनिंग मैथेडोलॉजी, पर्सनल मोटिवेशन बहुत महत्व रखता है।

एक सवाल के जवाब में उन्हाेंने कहा कि अपनी हैप्पीनेस को अपने लक्ष्य से जोड़ लिया था। हारता या जीतता लेकिन हर दिन खुश रहता था। रोज खुद से मुकाबला करता था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पोर्ट्स में भी प्रतिस्पर्धा प्रेशर देती है। मैंनेे मस्तिष्क को संतुलित और सांस को नियंत्रित रखना सीखा। आप भी चुनौतियों से घबराएं नहीं। खुद का मुकाबला खुद से करते हुएं आगे बढ़ते रहें।

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