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सीसीएल में फर्जी नौकरी के मामले में जीएम सहित 24 अभियुक्तों को तीन-तीन साल की सजा

सीसीएल में फर्जी नौकरी के मामले में जीएम सहित 24 अभियुक्तों को तीन-तीन साल की सजा

रांची, 20 दिसंबर(हि.स.)। सीबीआई के विशेष न्यायाधीश पीके शर्मा की अदालत ने शुक्रवार को 26 साल पुराने मामले में सीसीलए में फर्जी नौकरी के मामले में सुनवाई हुई।

इस मामले में सीसीएल के तत्कालीन जीएम हरिद्वार सिंह(90), उनके पुत्र प्रमोद कुमार सिंह सहित 22 अभियुक्तों को अदालत ने सजा सुनायी। जबकि दो आरोपी मुरारी कुमार सिन्हा और दशरथ गोप को रिहा कर दिया। हरिद्वार सिंह सहित 22 अभियुक्तों को तीन-तीन साल की सजा सुनाई गयी।

जीएम हरिद्वार सिंह को 50 हजार तथा अन्य अभियुक्तों को दो-दो हजार रुपये जुर्माना लगाया गया। जुर्माना नहीं देने पर हरिद्वार सिंह को तीन महीने जबकि अन्य को एक-एक महीने की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी। सीबीआई की ओर से वरीय लोक अभियोजक बृजेश कुमार यादव और लोक अभियोजक खुशबू जायसवाल ने बहस की और आरोपितों को अधिक से अधिक सजा देने की मांग की। मामला पिपरवार क्षेत्र में पीपरवार क्षेत्र में अधिग्रहित जमीन के एवज में नौकरी देने का मामला है।

इस मामले में सीबीआई के एसीबी टीम ने वर्ष 18 अगस्त 1998 को केस दर्ज किया था। इस मामले में तीन दिसंबर 2003 को चार्जशीट दाखिल की गयी थी,जबकि इस मामले में 22 जनवरी 2008 में आरोप गठन किया गया था।

इस मामले में कुल 28 आरोपी थे। इसमें एक आरोपी अखिलेश्वर प्रसाद की सुनवाई के दौरान निधन हो गया था। तीन आरोपित समीर घोष, सुभाष कुमार पालित तथा विजय नारायण सरकारी गवाह बन गये थे, अदालत ने उन्हें क्षमादान दिया। जिन्हें सजा सुनाई गयी उनमें जिसमें मुख्य आरोपित सीसीएल के तत्कालीन जीएम हरिद्वार सिंह,उनका पुत्र प्रमोद सिंह,मनोज पाठक, प्रमोद कुमार, हेमाली चौधरी, बिपिन बिहारी दुबे, मनदीप राम, बंसीधर दुबे, मुरारी कुमार दुबे, केएन दुबे, परमानंद वर्मा, जयपाल सिंह, दिनेश राय, गुरुदयाल प्रसाद, अजय प्रसाद, केदार प्रसाद, निरंजन कुमार, विनोद कुमार, मनोज कुमार, संजय कुमार, बैजनाथ महतो, ललित मोहन सिंह आदि शामिल हैं।

क्या है मामला

पीपरवार क्षेत्र में अधिग्रहित जमीन के एवज में फर्जी तरीके से सीसीएल में नौकरी देने से यह मामला है। वर्ष 1995 में दो बार में क्रमश: 14 एवं 4 लोगों को जमीन के एवज में नौकरी दी गई। साल 1996 में 10 लोगों को सीसीएल में नौकरी दी गई। जबकि फर्जी कागजात पर कुल 28 लोगों को नौकरी दी गई। सभी ने जमीन का गलत दस्तावेज प्रस्तुत कर अधिकारियों की मिलीभगत से नौकरी पाने में सफल रहा। फर्जीवाड़े का उजागार वर्ष 1998 में उस समय हुआ जब अधिग्रहित जमीन का वास्तविक हकदार कागजात लेकर नौकरी मांगने आया। फर्जीवाड़े को लेकर सीबीआइ ने 18 अगस्त 1998 को प्राथमिकी दर्ज की। सीबीआई ने पांच साल बाद जांच पूरी करते हुए तीन मई 2003 को चार्जशीट दाखिल की थी। मामला उजागर होने की तीन साल बाद फर्जी नौकरी पाने वाले को बर्खास्त कर दिया गया था।

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