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समस्त मानव जाति के लिए प्रेरक हैं गुरु नानक के उपदेश

समस्त मानव जाति के लिए प्रेरक हैं गुरु नानक के उपदेश

555वीं गुरु नानक जयंती (15 नवम्बर) पर विशेष

– योगेश कुमार गोयल

प्रतिवर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा को गुरु नानक जयंती मनाई जाती है और इस वर्ष 15 नवम्बर को यह पर्व पूरे जोश और हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। ‘सिखों के प्रथम गुरु’ गुरु नानक जी की जयंती को ‘प्रकाश पर्व’ कहा जाता है। इस बार गुरु नानक जी का 555वां प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। पाखण्डों के घोर विरोधी रहे गुरु नानक देव की यात्राओं का वास्तविक उद्देश्य लोगों को परमात्मा का ज्ञान कराना और बाह्य आडम्बरों से दूर रखना था। गुरु नानक जयंती के अवसर पर उनके जीवन, आदर्शों तथा उनकी दी हुई शिक्षाओं का स्मरण किया जाता है। इस दिन धर्मगुरु और समाज के सम्माननीय लोग गुरु नानक की शिक्षाओं और संदेशों को दोहराते हैं ताकि लोगों के बीच उनके पवित्र विचारों को फिर से ताजा किया जा सके।

सितम्बर 2019 में 550वें प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में नेपाल द्वारा सौ, एक हजार तथा ढाई हजार रुपये के तीन स्मारक सिक्कों का सेट जारी किया था। पाकिस्तान सरकार द्वारा भी गुरुजी के 550वें प्रकाश पर्व पर 50 रुपये का एक सिक्का जारी किया गया था। कोलकाता टकसाल द्वारा 550वें प्रकाशोत्सव पर 12 नवम्बर 2019 को 44 मिलीमीटर गोलाई वाला 35 ग्राम वजनी 550 रुपये का एक स्मारक सिक्का जारी किया गया था, जिसमें 50 फीसदी चांदी, 40 फीसदी तांबा और पांच-पांच फीसदी निकल व जिंक का मिश्रण है। सिक्के के एक ओर गुरुद्वारा श्री बेर साहिब का चित्र उकेरा गया था और उसी ओर सिक्के पर देवनागरी व अंग्रेजी में ‘श्री गुरु नानक देव जी का 550वां प्रकाश पर्व’ लिखा गया था।

गुरु नानक जी का विवाह 19 वर्ष की आयु में गुरदासपुर के मूलचंद खत्री की पुत्री सुलखनी के साथ हुआ था किन्तु धार्मिक प्रवृत्ति के नानक को गृहस्थाश्रम रास नहीं आया और वे सांसारिक मायाजाल से दूर रहने का प्रयास करने लगे। पिता ने उन्हें व्यवसाय में लगाना चाहा किन्तु व्यवसाय में भी उनका मन न लगा। एक बार पिता ने कोई काम-धंधा शुरू करने के लिए उन्हें कुछ धन दिया लेकिन नानक ने सारा धन साधु-संतों और जरूरतमंदों में बांट दिया और एक दिन घर का त्याग कर परमात्मा की खोज में निकल पड़े। पाखंडों के घोर विरोधी रहे गुरु नानक की यात्राओं का वास्तविक उद्देश्य लोगों को परमात्मा का ज्ञान कराना किन्तु बाह्य आडम्बरों एवं पाखंडों से दूर रखना ही था। वे सदैव छोटे-बड़े का भेद मिटाने के लिए प्रयासरत रहे और उन्होंने निम्न कुल के समझे जाने वाले लोगों को सदैव उच्च स्थान दिलाने के लिए प्रयास किया। ‘एक पिता एकस के हम बारिक’ नामक उनका सिद्धांत समाज में ऊंच-नीच और अमीर-गरीब के भेद को मिटाता है।

555वें प्रकाश पर्व के विशेष अवसर पर गुरु नानक जी से जुड़ी कुछ ऐसी घटनाओं और किस्सों का उल्लेख करना अनिवार्य हो जाता है, जो उनकी महानता और चमत्कारिक शक्तियों को स्पष्ट परिलक्षित करती हैं। गुरु नानक जी एक बार हरिद्वार पहुंचे तो उन्होंने देखा कि बहुत से लोग गंगा में स्नान करते समय अपनी अंजुली में पानी भर-भरकर पूर्व दिशा की ओर उलट रहे हैं। उन्होंने विचार किया कि लोग किसी अंधविश्वास के कारण ऐसा कर रहे हैं। तब उन्होंने लोगों को वास्तविकता का बोध कराने के उद्देश्य से अपनी अंजुली में पानी भर-भरकर पश्चिम दिशा की ओर उलटना शुरू कर दिया। जब लोगों ने काफी देर तक उन्हें इसी प्रकार पश्चिम दिशा की ओर पानी उलटते देखा तो उन्होंने पूछ ही लिया कि भाई तुम कौन हो और पश्चिम दिशा में जल देने का तुम्हारा क्या अभिप्राय है? नानक ने उन्हीं से पूछा कि पहले आप लोग बताएं कि आप पूर्व दिशा में पानी क्यों दे रहे हैं? लोगों ने कहा कि वे अपने पूर्वजों को जल अर्पित कर रहे हैं ताकि उनकी प्यासी आत्मा को तृप्ति मिल सके। इस पर नानक ने पूछा कि तुम्हारे पूर्वज हैं कहां? लोगों ने जवाब दिया कि वे परलोक में हैं लेकिन तुम पश्चिम दिशा में किसे पानी दे रहे हो? गुरु नानक बोले कि यहां से थोड़ी दूर मेरे खेत हैं। मैं यहां से अपने उन्हीं खेतों में पानी दे रहा हूं। लोग आश्चर्यचकित होकर पूछने लगे, ‘‘खेतों में पानी! पानी खेतों में कहां जा रहा है? यह तो वापस गंगा में ही जा रहा है और यहां पानी देने से आपके खेतों में पानी जा भी कैसे सकता है?’’

गुरु नानक जी ने उनसे पूछा कि यदि पानी नजदीक में ही मेरे खेतों तक नहीं पहुंच सकता तो इस प्रकार आप द्वारा दिया जा रहा जल इतनी दूर आपके पूर्वजों तक कैसे पहुंच सकता है? लोगों को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे गुरु जी के चरणों में गिरकर प्रार्थना करने लगे कि उन्हें सही मार्ग दिखलाएं ताकि जिससे उन्हें परमात्मा की प्राप्ति हो सके। गुरु नानक जी सदैव मानवता के लिए जीए और जीवनपर्यन्त शोषितों व पीड़ितों के लिए संघर्षरत रहे। उनकी वाणी को लोगों ने परमात्मा की वाणी माना और इसीलिए उनकी यही वाणी उनके उपदेश एवं शिक्षाएं बन गई। ये उपदेश किसी व्यक्ति विशेष, समाज, सम्प्रदाय अथवा राष्ट्र के लिए ही नहीं बल्कि चराचर जगत एवं समस्त मानव जाति के लिए उपयोगी हैं।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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