अकाल तख्त का आदेश: सिख नरसंहार स्मृति में जलाएं घी के दीये, बिजली सजावट से बचें!
पंजाब के अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर के निकट श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने सिख समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश जारी किया है। उन्होंने 1 नवंबर 2024 को गुरु हरगोबिंद साहिब जी की स्मृति में केवल घी के दीयों को जलाने की सलाह दी है। ज्ञानी रघबीर सिंह ने निर्देश दिया कि इस दिन बिजली की सजावट ना की जाए। उनका यह निर्देश 1 नवंबर 1984 को हुए सिख नरसंहार की 40वीं बरसी के संदर्भ में सामने आया है। उन्होंने कहा कि इस वर्ष केवल स्वर्ण मंदिर और श्री अकाल तख्त साहिब को ही बिजली की रोशनी से सजाया जाएगा। साथ ही, उन्होंने विश्वभर के सिख संगत को अपील की है कि वे अपने घरों और गुरुद्वारों में केवल घी के दीये जलाएं और बिजली की सजावट से दूर रहें।
ज्ञानी रघबीर सिंह ने सिख नरसंहार की दुखद घटनाओं को स्मरण करते हुए कहा कि 1984 में कांग्रेस सरकार के दौरान 110 शहरों में सिखों का कत्लेआम हुआ था। उनके अनुसार, यह एक अत्यंत दुखद घटना थी जिसे सिख समुदाय के लिए एक गहरा घाव माना जाता है। उन्होंने इसे “सिख नरसंहार” के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता पर जोर दिया, यह चेतावनी देते हुए की यह दुखद घटना आने वाली पीढ़ियों के दिलों में भी जिंदा रहेगी। 1 नवंबर का दिन बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाना भी महत्वपूर्ण है, जो श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी की ग्वालियर किले से रिहाई और अमृतसर में आगमन को स्मरण करता है।
1984 का सिख नरसंहार भारतीय इतिहास के एक काले अध्याय के रूप में जाना जाता है। यह नरसंहार तब शुरू हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गई थी। इस घटना के बाद, पूरे दिल्ली और अन्य प्रमुख शहरों में सिख समुदाय के खिलाफ हिंसा भड़क उठी। उस समय की स्थिति बहुत भयावह थी; भीड़ ने सिखों के घरों, गुरुद्वारों और दुकानों पर हमला कर दिया, जिसमें सिख पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की निर्मम हत्या कर दी गई। कई जगहों पर ट्रेन के डिब्बों में सिखों को जीवित जलाने की वारदातें हुईं और उनके घरों को आग के हवाले कर दिया गया।
आधिकारिक आंकड़ों पर यदि नजर डालें, तो दिल्ली में लगभग 3000 सिखों की हत्या की गई थी, जबकि अन्य शहरों में भी हिंसा के गंभीर मामले देखे गए। हालांकि, अनौपचारिक आंकड़े इससे कहीं अधिक भयावह हैं, क्योंकि हिंसाचारी घटनाओं के बाद कई वर्षों तक सटीक आंकड़ों का अभाव रहा। इस नरसंहार ने न केवल सिख समुदाय की पहचान को चुनौती दी, बल्कि सामाजिक सद्भाव को भी बुरी तरह प्रभावित किया। इस काले अध्याय को याद कर, ज्ञानी रघबीर सिंह ने सभी से अपील की है कि वे घी के दीयों के माध्यम से अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करें और इस दिन को शोक, श्रद्धा और एकता के साथ मनाएं।